Description
प्रस्तुत पुस्तक में सनातन जीवन पद्धति की संस्कार विधियों का विज्ञान, मनोविज्ञान और सामाजिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में विवेचना किया गया है। इन संस्कारों का प्रभाव समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना पर पड़ता है। समय के साथ पश्चिमी सभ्यता का हमारी शिक्षा और दैनिक जीवन पर इतना प्रभाव पड़ा कि स्थापित सामाजिक मूल्यों का अवसान होने लगा। आधुनिक समाज इन संस्कारों से दूर होता गया और अनेक कुरीतियां अपना पैर पसारने लगीं। संस्कारित जीवन से ही उत्कृष्ट समाज की कल्पना की जा सकती है। हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को किसी भी स्तर पर संस्कारित शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं। उन्हें यम (स्वयं के आचरण की शुद्धि) और नियम (समाज में रहने के नियम) आधारित कोई शिक्षा नहीं देते। जब तक हम भौतिक संसार के ज्ञान के साथ आध्यात्मिक ज्ञान का विकास नहीं करेंगे, तब तक जीवन में हम सफल नहीं हो सकते। प्रस्तुत पुस्तक में शास्त्रों में वर्णित सोलह संस्कार विधियों की आवश्यकता, विज्ञान, मनोविज्ञान एवं दार्शनिक पक्ष पर विवेचना की है।
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