Description
सर्वोदय का दर्शन सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयः, बहुजन हिताय बहुजन सुखाय, वसुधैव कुटुम्बकम जैसी उदात्त भावनाओं एवं विचारों को अपने मे समेटे लोकमंगलकारी मानवतावादी अवधारणा है। उदारीकरण, निजीकरण एवं बाजारीकरण के वर्तमान दौर में जहां पूंजीवाद के नंगा नाच चल रहा है, शोषण का स्वरूप संस्थागत हो गया है, हर कोई आगे निकलने की आपाधापी में है, सर्वोदय की संकल्पना ही दुनिया में इन्सानी मूल्य को प्रतिष्ठापित करने का एकमात्र जरिया नजर आता है। एक तरफ गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी एवं मुफलिसी का आलम है, दूसरी तरफ ऐशो-आराम की जिंदगी जीने वाला एक बड़ा सुविधाभोगी वर्ग बन गया है जिसका देश के अधिकांश आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण है। फलतः समाज मे तनाव, अशांति, हिंसा आदि का बोलबाला है। ऐसे में इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि आधुनिक परिपेक्ष्य में महात्मा गांधी, विनोबा भावे और जय प्रकाश नारायण के सर्वोदय की विचारधारा, इन समस्याओं से निजात दिलाने का एक महत्वपूर्ण औजार सिद्ध हो सकता है।
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